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सुप्रीम कोर्ट ने कहा ओरण पर उचित कार्यवाही हो।

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ओरण जोकि पुराने समय से पशुओं और मवेशियों के चरने किए गांव और ढाणीयो के आसपास बड़े भूभाग को कहते हैं।

ओरण पुराने समय में यह कायदा था की खेती के लिए अलग जगह और पशुओं और मवेशियों के लिए अलग जगह तय होती थी।
 ओरण में कोई खेती नही करता न ही कोई हक या वाद तय करता।
ओरण में गांव के सभी पशुओं को चरने की अनुमति होती हैं। जब वर्षा ऋतु होती है तो गांव वाले अपने पाने खेतो में खेती करते हैं। और पशुओं को ओरण में चराते हैं।
लेकिन अब जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे आज सरकार ओरण को कब्जे करके अपने अधीन लेना चाहती हैं।
बड़े बड़े भू माफिया और बड़ी कंपनिया इस बड़ी जमीन यानी भूभाग पर नजर लगाकर बैठे हैं। आज हर गांव और ढाणी का देव ओरण आज सरकार की तरफ से कब्जे करके उस ओरण के बदले गांवो से सैकडो किलोमीटर दूर दूसरी जमीन दी जा रही हैं।
जोकि सरकार यह नहीं सोच रही है की पशु  दैनिक चरने के लिए उस जगह पर कैसे जायेंगे। केवल दूर जगह देने से काम नहीं चलेगा।
क्योंकि आज पशुओं के ओरण की समस्या सबसे बड़ी चिंता बनी हुई हैं।
राजस्थान में पशुओं और विशेष कर गाय के लिए कितने ही महपुरुष कट गए। जोकि गांव ढाणियों के अर्धय देव बन गए।
यह ओरण किसी न किसी विशेष अराध्य के नाम से हैं। प्रत्येक गांव में स्थानीय कुल देवा या भुदेव या शूरवीर महपुरुषा होता है जिसको लोग देवता मानते हैं। वैसे तो हर समाज और कबीले का अपना पाना कुलदेव होता था। जिसके नाम से ओरण की भूमि का नामांकन होता था।
वैसे राजस्थान में करणी माता का ओरण,तनोट राय का ओरण,भादरिया राय का ओरण,पाबूजी का ओरण,रामदेव जी का ओरण,नागणेच्या राय का ओरण से लेकर राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र में ओरण हैं।
सरकार इसको कब्जे करने की कोशिश में लगी हैं। जोकि पुरातन नियमो और रिवाजों और पशुओं के हक पर एक बहुत बड़ा धक्का हैं।
इसी विषय को लेकर मैने भी अपने गांव के ओरण को बचाने के लिए जोधपुर कलेक्टर को ज्ञापन दिया जिसमे जोइंत्रा  गांव के ओरण को बचाने के लिए सरकार को आपत्ति दर्ज की।
ठीक वैसे ही राजस्थान के सभी जिलों और तहसीलों और गांवो और ढाणीयो में स्थानीय लोग आंदोलन वाली स्थिति में बैठे हैं।
इसी कड़ी में जैसलमेर में पशु प्रेमियों ने ओरण बचाने किए अनशन शुरू किया दो दिन के अनशन में तनोट राय,घंटियाली राय,रनाऊ गांव का ओरण रेवेन्यू में ओरण नाम से दर्ज हो। ताकि इन जमीनों का दुर्पयोग न हो। साथ ही पशुओं के चरने में कोई आपत्ति नहीं हो।
अनशन पर बैठे लोगो ने कहा की सरकार    जैसलमेर की ओरण जमीन निजी और बड़ी कंपनियों को सौंपना चाहती हैं।
जोकि पशुओं के साथ धोखा होगा। पशु तो बोलता नहीं उसके हक को कौन सुरक्षित रखेगा।
  जिन जमीनों को हमारे पूर्वजों ने ओरण के नाम से पशुओं के हक लिए छोड़ी थी उस जमीन से तिनका भी लेना पाप माना जाता था।
सरकार ओरण की जमीनों को अपने अधीन लेने के बाद इन जमीनों को बड़े रसूख से बेचेंगे। इसी विषय पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। ओरण को सुरक्षित रखते हुए वन कानून के ताकत ओरण को सुरक्षित रखना जरूरी हैं।
  सुप्रीम कोर्ट ने ओरण को जमीन को सुरक्षित रखने के लिए सरकार से कहा की ओन ग्राउंड और स्टेलाइट मैपिंग करवाए।
साथ ही देव वनो को स्थानीय समुदायों द्वारा सरंक्षक भूमिका को मान्यता प्रदान करने का निर्देश पारित करे।
  सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा की जल्द से जल्द तत्काल देव वनो को मान्यता देने का निर्देश पारित किया।
पवित्र देव वनो को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा सी के माध्यम से सुरक्षा प्रदान किया जाए। जोकि “सामुदायिक रिजर्व” की घोषणा की  अनुमति देती हैं।
   सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया की स्थानीय ओरण समुदायों को वन अधिकार नियम FRO के तहत मान्यता दी जाना  चाहिए। इसके अलावा वन्य पर्यावरण जलवायु इसके अलावा, वन-पर्यावरण-जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राज्य के वन विभाग के साथ फैसले की क्रियान्विति के लिए 5 सदस्यीय समिति गठित करने का
     सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ स्थानीय लोगो ने भी दो दिन के  अनशन को खत्म करते हुए चेतावनी दी की यदि समय रहते सरकार ने इस। विषय पर गौर नही किया तो यह एक उग्र आंदोलन का रूप लेगा। जिसकी जिमेवारी सरकार की होगी।
अब सरकार क्या निर्णय लेती हैं। यह बड़ी चिंता का विषय हैं।
MOKAJI TV
Author: MOKAJI TV

I am Moti Singh Rathore Founder CEO DIRECTOR of Mokaji Media & Entertainment Pvt Ltd Company. Our Media Company run Media business with online News Portal "MOKAJI TV".

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